बालों के फैशन से हो सकता है गंजापन

                         बालों के फैशन से हो सकता है गंजापन               ये जुल्फ अगर खुलके बिखर जाये तो अच्छा ..... मोहम्मद रफी के गाये इस गीत में हो सकता हैकि आपको केवल रोमांटिक पहलू ही नजर आये, लेकिन इस गीत में महिलाओं के लिये उपयोगी वैज्ञानिक एवं चिकित्सकीय संदेश छिपा है। केश एवं त्वचा विशेषज्ञों का कहना है कि हेयर स्टाइल के नाम पर बालों को चोटी के रूप में कसकर बांधना, जूड़े बांधना अथवा बालों में खिंचाव पैदा करने वाले क्लिप, रफल्स, क्लचर, हेयरपिन, जूड़ा पिन, बटर क्लाई, हेयर बैंड और बॉब पिन लगाना महंगा साबित हो सकता है। 


हेयर ट्रांसप्लांट विशेषज्ञ तथा मैक्स हॉस्पीटल के वरिष्ठ कॉस्मेटिक सर्जन डा. पी. के. तलवार बताते हैं कि बालों में खिंचाव पैदा करने वाले केश विन्यासों के कारण बाल जल्दी झड़ते हैं और अधिक संख्या में टूटते हैं जिससे असमय गंजापन होने का खतरा हो सकता है। यह पाया गया हैकि अगर बालों को लंबे समय तक लगातार कस कर बंधी हुई अवस्था ट्रैक्शन) में रखा जाये तो बाल सिर की त्वचा से अलग हो जाते हैं। यह ट्रैक्शन एलोपेसिया कहलाती है।


नयी दिल्ली स्थित कॉस्मेटिक लेजर सर्जरी सेंटर ऑफ इंडिया (सीएलएससीआई) के निदेशक डा. तलवार बताते हैं कि ट्रैक्शन एलोपेसिया सामान्यतः उन महिलाओं में सिर के दोनों तरह होती हैजो अपने बालों को कसकर बांधती है या चोटी (पॉनीटेल) बनाती हैं। जिन महिलाओं के बाल अधिक बड़े और घने होते हैं, अगर वे अपने बालों का एक बड़ा जूड़ा बनाती हैं और अगर ये जूड़े पीठ पर झूलते रहें तो इससे भी बालों की जड़ों में काफी खिंचाव (ट्रैक्शन) पैदा होता है और इसके कारण संबंधित हिस्सों में ट्रैक्शन एलोपेसिया हो सकता है।


सुप्रसिद्ध त्वचा रोग विशेषज्ञ एवं अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के त्वचा रोग विभाग के पूर्व अध्यक्ष डा. जे. एस. पसरीचा के अनुसार यह देखा गया है कि सिख लड़के और युवा अपने सिर के ऊपर बालों का कसकर जूड़ा बनाते हैं या अपनी दाढ़ी के बालों को इसी तरह बांधते हैं जो अत्यधिक तनाव पैदा करता है और वे इसी तरह के एलोपेसिया पैदा कर सकते हैं। यह सामान्यतः सिर के सामने और बगल के हिस्सों में या दाढ़ी में देखा जाता है।


त्वचा एवं बाल रोग विशेषज्ञ डा. रामजी गुप्ता बताते हैं कि सिर के बाल खोपड़ी की त्वचा से रथायी रूप से जुड़े होते हैं और इसलिए पर्याप्त बल लगाए बगैर बाल को त्वचा से उखाड़ना आसान नहीं होता है। त्वचा से बालों की एक लट को खींचने पर दर्द होता है। त्वचा से एक बाल को खींचने में कितना बल लगाया जा सकता है इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सक कि कुछ मजबूत इच्छाशक्ति वाले लोग सार्वजनिक प्रदर्शन के दौरान अपने बालों से ट्रक या इसी तरह कुछ अन्य भारी गाड़ियों को खींचते हैं।


ट्रैक्शन एलोपेसिया का पहला मामला 1907 में ग्रीनलैंड की उन लड़कियों एवं महिलाओं में सामने आया था जो बालों को कसकर चोटी (पोनीटेल) बनाती थी। बाद में बालों में हेयरडू लगाने वाली जापानी महिलाओं में भी बाल झड़ने के मामले सामने आये। पगडी बांधने वाले सिखों तथा सिर पर सर्पनुमा ढेर सारी चोटियां बनाने वाली अमरीकी-अफ्रीकी महिलाओं में असमय गंजेपन का मुख्य कारण ट्रैक्शन एलोपेसिया ही है। सिखों में टैक्सन एलोपेसिया की समस्या बहुत अधिक पायी जाती


है क्योंकि पगड़ी को गिरने से रोकने के लिये पगड़ी को बालों के साथ कस कर बांधी जाती हैजिससे बालों में लगातार खिंचाव रहता है।


डा. पी. के. तलवार बताते हैं कि बालों में क्लिप, बैंड, हेयर रालर आदि के प्रयोग, बालों को घुघराने बनाने, विभिन्न तरह की चोटियां बनाकर बालों को गूंथने और अन्य केश विन्यासों के कारण ट्रैक्शन एलोपेसिया की समस्या बढ़ती है। अगर बालों पर खिंचाव लगातार बना रहे तो गंजापन (एलोपेसिया) स्थायी हो जाता है और ऐसे में सिर पर दोबारा बाल उगाने के लिये प्रत्यारोपण तकनीक का सहारा लेना पड़ता है।


टैक्सन एलोपेसिया विश्व के सभी देशों में है लेकिन जहां बालों को खिंचाव पैदा करने वाले तरीकों से बालों को बांधा या गुंथा जाता है वहां यह समस्या अधिक पायी जाती है।


अफ्रीकी अमरीकी महिलाओं में यह समस्या बहुत अधिक है क्योंकि ये महिलायें सिर पर विभिन्न तरीकों से ढेर सारी चोटियां बनाती हैं जिससे बालों पर लगातार खिंचाव रहता है। इस हेयर स्टाइल को कॉर्नरोज (मक्के जैसी धारियां) कहा जाता है। कई महिलायें बालों को सीधा एवं लंबा रखने के लिये लंबे समय तक क्लिप लगाकर रखती हैं जिससे बालों में तीव्र खिंचाव पैदा होता है।


 


डा. तलवार बताते हैं कि बालों को कसकर बांधने के अलावा बालों में ब्लीच, डाई अथवा स्टेंथनर जैसे रसायनों के प्रयोग, बालों में बहुत अधिक कधी करने तथा बालों को संवारने के लिये हेयर डायर के इस्तेमाल से भी बालों के झड़ने के दर में वृद्धि होती है। इन सब कारणों से सिर के रोम कूप (हेयर फालिकल्स) कमजोर पड़ जाते हैं। अगर बालों के झड़ने का पता सही समय पर चल जाये तो ट्रैक्शन एलोपेसिया को रोका जा सकता है। लेकिन कई बार बाल इतनी धीमी गति से झड़ते हैं कि उसका पता नहीं चलता और जब पता चलता है तो स्थिति इतनी गंभीर हो चुकी होती है कि दवाइयों से भी कोई लाभ नहीं होता और ऐसे में एकमात्र उपाय बालों का प्रत्यारोपण होता है।


डा. रामजी गुप्ता बताते है कि ट्रैक्सन एलोपेसिया का आरंभिक अवस्था में पता चल जाये तो इसके इलाज के तौर पर बालों को गिरने से बचाने के लिए ट्रैक्शन से बचाना ही पर्याप्त होता है। कुछ दिनों के बाद यहां तक कि बिना किसी दवा के इलाज के ही बाल फिर से आने लगते हैं, लेकिन बालों के फिर से बढ़ने में कुछ समय लगता है।


बालों को गलत तरीके से बांधने के अलावा बढ़ते तनाव, प्रदूषण, धूम्रपान एवं जंक फूड के सेवन के कारण भी सिर के बाल तेजी से झड़ते हैं। इन कारणों से आज लोग कम उम्र में ही गंजे हो रहे हैं। इंडियन एसोसिएशन ऑफ हेयर ट्रांसप्लांट के एक सर्वे से पला चला है कि मौजूदा समय में 67 प्रतिशत लोग असमय गंजेपन के शिकार हो रहे हैं। अनुमान हैं कि पिछले पांच वर्षों में यह समस्या पांच प्रतिशत बढ़ी है।       


                                                                                      डा.  - विनोद कुमार