थरी, पथर, स्टोन, अश्मरि इन नामों से इस रोग को जाना जाता है। पित्ताशय या गाँलब्लेडर में होने वाली पथरी को पित्ताशय की पथरी या गॉलब्लेडर स्टोन कहा जाता है। इसी प्रकार वक्र में होने वाली पथरी वृक्काश्मरि या किडनी स्टोन नाम से जानी जाती है। यही पथरी जब मूत्राशय या यूरिनरी ब्लेडर में पहुंचती है तो कोलेसिस्टम नाम से जानी जाती है। पित्ताश्मरि व मुत्राश्मर तथा वृक्कश्मरि के अलग-अलग प्रकार हैं तो उनके कारण भी अलग-अलग ही हैं।
क्यों होती है पथरी : पित्ताशय की राशी के कई कारण हो सकते हैं.शरीर में कोलेस्टाल मेटाबालिज्म में गड़बड़ी होने से ये हो सकती है
- जो महिलायें गर्भ निरोधक गोलियों का सेवन करती हैं उन्हें गॉलब्लेडकर स्टोन का खतरा ज्यादा रहता है। गोलियों से इस्ट्रोजन की मात्रा शरीर में बढ़ जाती है। -
पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं को यह पथरी ज्यादा होती है
विशेषकर 40 वर्ष की उम्र के आसपास की 30 प्रतिशत स्त्रियों में पथरी मिल सकती है। - बच्चों में रक्तविकार हो तो पथरी हो सकती है। - कुछ रोगों के साथ जैसे मोटापा, मधुमेह, आनुवंशिक रक्तविकार आदि में गॉलब्लेडर स्टोन का खतरा अधिक रहता है। - उपवास करना या भूखे रहना भी इसका कारण हो सकता है। - ईष्र्या, भय, क्रोध आदि मानसिक विकारों की अधिकता से भी गॉलब्लेडर स्टोन हो सकता है। - पित्तवर्धक आहार-विहार ज्यादा लेना, चाय, कॉफी और तीखे मसालेदार भोजन व पानी कम पीना आदि। इन सब कारणों से पित्त में गाढ़ापन अधिक आने लगता है। धीरे-धीरे यह कठोरता का रूप लेकर पथरी का रूप ले लेता है। कई बार ये पथरी एक या अनेक (30 तक भी) मिल सकती है। निष्क्रिय अवस्था में इसके बारे में पता नहीं चल पाता किन्तु हिलने डुलने या नालिका में रूकावट होने पर लक्षण प्रकट होने लगते हैं।
::पित्ताशय की पथरी होने पर निम्न लक्षण हो सकते हैं। पेट में दाहिनी ओर तेज दर्द होता है जो ऊपर की ओर बढ़ता भारी या अत्याधिक घी तेल युक्त आहार लेने के बाद यह दर्द शुरू होता है। अक्सर उल्टी आती है, जी घबराता है, मुंह का स्वाद कड़वा हो सकता है। दर्द 3-4 तीन तक भी रह सकता है। वेदना असह्य होती है। दोनों कंधों के बीच के हिस्से या दाहिनी ओर दर्द होता है। डकारें, बदहजमी, पेट में भारीपन, गैस बनना आदि अवसर होते हैं। पेट पर सूजन आ जाती है। बुखार हो जाता है। पित्तनलिका में रूकावट से पीलिया व पेकिन्क्रयाज की नलिका पर रूकावट से अग्नयाशयशोथ (पेंक्रियाटाइटिस) हो सकता है। लम्बे समय तक पित्ताश्मरि रहने पर कैंसर तक भी हो सकता है। पित्ताशय में संक्रमण से पस (मवाद) पड़ सकता है। गैंग्रीन व पित्ताशय में छिद्र भी हो सकता है।
वृक्क या किडनी में स्टोन होने पर रोगी को कमर में धीमा-धीमा दर्द होता रहता है। कभी-कभी पेट में दर्द रहता है। मूत्र में जलन, मूत्र की मात्रा में कभी व रूकावट महसूस होती है। कभी-कभी यह पथरी युरेटर (मूत्रनलिका) व मूत्राशय में पहुंचकर रूक जाती है या फंस जाती है तो दर्द कमर से पेडू की ओर तथा पुरुषों के वृषण व स्त्रियों के गुप्तांगों तक तथा नीचे जांघों तक दर्द चला जाता है। अमूत्र रूक-रूककर जलनयुक्त, दर्द के साथ कभीकभी रक्त भी मूत्र के साथ आने लगता है। उल्टी आती है बुखार भी हो जाता है। पथरी का दर्द अत्याधिक तीव्र होता है वृषक की अपेक्षा युरेटर (मूत्रनलिका) व यूरिनरी ब्लेडर (मूत्राशय) में होने पर दर्द बहुत तीव्र होता है।
इसके भी कई कारण हो सकते हैं। - ऑटोइम्युन सिस्टम से यह तकलीफ होना सामान्य है। इसमें बार बार पथरी बनने लगती है। - पानी कम मात्रा में पीना तथा तरल पदार्थ कम मात्रा में लेना। - देर तक मूत्र के वेग को रोककर रखना, इससे तलछट धीरे-धीरे अश्मरिका रूप ले लेता है।
क्या खायें (आहार-विहार) :-भोजन में ठोस आहार-विहार भाग लेते है तो आहार का एक मिर्चभाग तरल पदार्थ के रूप में लें। सूप, जूस, छाछ, स्वरस आदि किसी तीखे भी रूप में तरल भाग या द्रव भाग लें। • दही• दिन में कम से कम 2 से 3 नहीं लीटर जल अवश्य पीना • मांस चाहिये। इससे दोनों ही प्रकार की पथरी का खतरा नहीं रहता है। भोजन सादा, सुपाच्य, ताला व गॉलब्लेडर हल्का लें। • वसा, घी, तेल की मात्रा अत्यल्प लें। तरबूजा, करेला, मुन्नका, अंगूर, तेल सेवफल आदि को भोजन में। शामिल करें। डिब्बाबंद गर्मियों में गन्ने का रस, नींबू इससे की शिकंजी, फालसाशर्बत तथा वंदन का शर्ब, ठंडाई, तनावदृध की लस्सी, छाछ का विकारों प्रयोग अवश्य करें ताकि किडनी जलीयांश की पूर्ति होती रहे। है उपवास के दिन भी फलाहार, नींबू यानी, नारियल पानी, शहद पानी बार-बार लेते रहें। बहुत ज्यादा भूखे रहकर बहुत भारी खाना की नीति को मलमूत्र छोड़कर बार-बार तरल लेते रहें।दिन भर में एक बार खुलकर हंसे, खिलखिलायें, गुनगुनायें मन को शांत रखने वाले कार्य करें। नियमित रूप से प्राणायाम, योगासन या अन्य कोई श्रम अवश्य करें। शांत निद्रा लें। निद्रा व भोजन का समय निश्चित रखें। इस प्रकार पथरी से बचाव भी संभव है।
- वृक्क से निकलने वाले हार्मोन्स का अंसतुलन होना इससे कैल्शियम की मात्रा नियंत्रित नहीं हो पाती है। -
भोजन चटपटा, तीखा, अम्लीय व क्षरीय अधिकतायुक्त लेना। -
टमाटर, पालक, अमरूद आदि का ज्यादा मात्रा में प्रयोग करना। -
अधिक प्रोटीन युक्त आहार लेना दालों आदि का अधिक सेवन करना। -
कैल्शियम व ऑक्सीलेंट प्रधान आहार लेना आदि कारणों से किडनी स्टोर हो सकता है। -
जब भी मूत्र में साल्ट (लवण) मिनरल्स, जल व अन्य तत्त्वों का संतुलन बिगड जाता है स्टोन बनने लगते हैं।
- गाउट, इन्फ्लामेट्री बाडल्स डिजीज जैसे क्रोन्स डिजीज के कारण भी पथरी का निर्माण हो सकता है। - अनुवांशिक के कारण पारिवारिक इतिहास भी मिल सकता है। -
कभी-कभी पैराथाइराइड ग्रंथि के स्रोव की अधिकता से कैल्शियम लेवल बढ़ जाता हैऔर पथरी की संभावना हो जाती है।
- मूत्राशय में बार-बार संक्रमण होना भी किडनी स्टोन का कारण हो सकता है।
- मूत्राशय में बार-बार संक्रमण होना भी किडनी स्टोन का काकरण हो सकता है। - उत्तरी व पूर्वी भारत में अश्मरि ज्यादा होती है इसके अलावा अज्ञात कारण से भी किडनी स्टोन हो सकता है।
पित्ताशय की पथरी के लिये :
- पानी ज्यादा मात्रा में पीयें।
- अत्यधिक तेल, घी, वसायुक्त पदार्थ नहीं खायें।
- मोटापा ना होने दें। वजन पर नियंत्रण करें। नियमित व्यायाम करें ताकि वजन नहींबढ़े। मोटे लोगों में गालब्लेडर स्टोन ज्यादा होती है। - गालब्लेडर स्टोन ड़ी हो तो ऑपरेशन करवा कर निकलवा दें। -
छोटी पथरी हो तो दर्द के स्थान पर पोस्टडोडे को पानी में उबालकर उस पानी में गौण भिगोकर सेक करें।
- दर्द शुरू होते ही आलिव आइल (जैतून का तेल) 30 मिली मात्रा में एक-एक घंटे से पिलाते रहें या सुबह 90 से 12 मिली तेल एक बार में ही पिला दें। दर्द दूर होने पर पथरी को तोड़ने वाली दवा दें। -
यहूद भस्म 125 एमजी कलमी शोरा, 1 ग्राम यवक्षार, 1 ग्राम मिलाकर मूली के पत्तों का रस 50 मिली के साथ दें।
- अविपत्तिकरचूर्ण 3जी यवक्षार 125 मिलीग्राम, सोडाबाईकार्ब 250 मिलीग्राम मिलाकर कुछ दिनों तक लगातार दें।
- मूली का प्रयोग ज्यादा
: मिर्च, लाल मिर्च व हरी मिर्च व अन्य तीखे मसाले नहीं खायें।। • दही, पनीर व अन्य दूध से बने पदार्थ नहीं खायें। • मांस व धूम्रपान, मदिरा का सेवन नहीं करें। पानी व तरल कम मात्रा में ना पीयें ज्यादा मात्रा में लें। गॉलब्लेडर स्टोन से बचने के लिए भारी देर से पचने वाला व अधिक तला भुना आहार नहीं लेना चाहिये। रिफाइंड तेल का प्रयोग नहीं करना चाहिए। जंक फूड, फास्टफूड और प्रिजर्वफूड, डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ नहीं लेना चाहिये, इससे दोनों ही पथरी होने की संभावना रहती तनाव, चिंता व क्रोध आदि मानसिक विकारों से दूर रहे इनसे गॉलब्लेडकर किडनी दोनों का ही स्वास्थ्य बिगड़ता है और स्टोन की संभावना होती है। कोल्ड ड्रिंक्स, सोड़ा, आईसक्रीम का सेवन नहीं करें क्योंकि इनसे शरीर में केमिकल्स पहुंचते हैं जो गुर्दे व पित्ताशय को नुक्सान पहुंचाते हैं। मलमूत्र का वेग नहीं रोकें। मूत्र रोकने से तलछट शरीर में जमा होती रहती है और पथरी बनने लगती है। भूखे नहीं रहें। ज्यादा उपवास करने से पित्त का स्राव निकलता नहीं है। गॉलब्लेडकर में एकत्रित पित्त धनीभूत होकर पित्त की पथरी बनने में सहायक होता है। ऑक्जीलेट व कैल्शियम प्रधान आहार नहीं लें ये किडनी स्टोन बनाने में सहायक होते हैं। प्यास का वेग लगने पर रोकें नहीं रखें क्योंकि शरीर में जलीकांश की कमी होने पर ही प्यास लगती है और निरंतर तरल की कमी से पथरी की संभावना बढ़ जाती है।
किडनी स्टोन के लिये :किडनी, युरेटर या युरिनरी ब्लेडर में स्ओर यदि बड़ी साइज का है तो सर्जरी करवा लेनाउचित है। किन्तु यदि छोटी है तो स्टोन (पथरी) को तोड़ने व अधिक मूत्र लाने वाली दवायें लेनी चाहिए ताकि पथरी का चूरा होकर मूत्र द्वारा बाहर निकल जायें।
- कलमीशोरा 500 ग्राम, नोसादर 500 ग्राम, यवक्षार 500 ग्राम, गन्ने का रस 20 मिली, नींबू का रस 5 मिली, सभी को मिलाकर निरंतर पिलाने से पथरी कुछ दिनों के प्रयोग से गलकर निकल जाती है।
- पपीते की जड़ 6 ग्राम, 50 मिली बारीक पीसकर छानकर सुबह शाम रोगी को 21 दिन तक पिलायें।
- टिंडे का रस 50 मिली, जवाखार 16 ग्रेन मिलाकर पीने से पथरी रेत बनकर कणरूप में मूत्रमार्ग से निकल जाती है।
- कुलथी की दाल 20 ग्राम को 250 मिली पानी में पकायें। 1/4 पानी शेष बचे, 62 मिली तब गुनगुना रोगी को पिला दें। दोनों समय कई दिनों तक प्रयोग करें। यह काफी देर में गलती है अतः रात में भिगोकर सुबह पकायें और सुबह भिगोकर शाम को पिलायें। - मूली का रस 25 मिली में 1 ग्राम यवक्षार मिलाकर कुछ दिनों तक लगाकार पिलाने से पथरी टूटकर निकल जाती है।
- दाऊदी के फूल 9 ग्राम पानी में उबालकर पिलायें। -
केले के तने का रस 30 मिली कलमीशोरा 25 ग्राम, दूध 250 मिली मिलाकर दिन में 2 बार पिलायें। 2 हफ्ते तक यह प्रयोग करायें। -
पीपल की कोंपल 7 नग, काली मिर्च 5 नग, ठंडाई की तरह पीसकर एक गिलास पानी में मिलाकर 3 दिन पीने से पथरी गलकर निकल जाती है।
- रोजाना अंगूर का 1 से 2 गिलास रस पीने से कुछ ही दिनों में पथरी निकल जाती है।
-- चीड़ की लकड़ी का चूर्ण 1/2 से 2 ग्राम तक पानी से एक माह तक लेने से पथरी गलकर निकल जाती है।
- बारलीवाटर व नारियल पानी पीने से मूत्र की जलन कम होती है। पथरी गलती है।
- यह धारणा है कि बियर से किडनी स्टोन घुल जाते हैं जबकि यह गलत है। बल्कि सच तो यह है कि बियर ऑक्जीलेट व यूरिक एसिड का बड़ा सोस है इससे किडनी की समस्या बढ़ सकती है।
- गोखरू का काढ़ा 15 मिली पीने से मूत्र की जलन व पथरी दूर हो - तरबूज खाने व तरबूज का रस पीने से पथरी गलकर निकल जाती है। -
अनार का रस पीना किडनी स्टोन के लिये लाभदायक है। -
2 अंजीर 1 कप पानी में उबालकर रोजाना खायें।
- 1 चम्मच तुलसीरस में 1 चम्मच शहर मिलाकर पीने से पथरी में लाभ होता है।
- राजमा की दाल किडनी स्टोन में लाभदायक है। -
नींबू का रस या शिकंजी लेने से (रोजाना 3 गिलास) कैल्शियम युक्त किडनी स्टोन में लाभदायक है। -
करेला जूस 30 मिली रोजाना पीने से किडनी स्टोन दूर होता है।
- 10 ग्राम मेहंदी के छाल को 20 गुना पानी में उबालें 1/4 शेष रहने पर छालकर पिलायें दिन में 3 बार 3 महीने तक लेने से लाभ होता है। -
2 प्याज 1 गिलास पानी में 10 मिनट तक उबालें 1 कूटकर रस निकालें 3 दिन पिलाने से लाभ होगा। 55 टोनी है।
डॉ.सुधा पारिख