कैल्शियम और आस्टियोपोरोसिस


  40-45 वर्ष की आयु को पार करते-करते स्त्रियों में फैल्शियम की कमी होने लगती है। कैल्शियम की कमी पुरूषों की अपेक्षा स्त्रियों में अधिक होती है। ऋतुस्त्राव प्रारम्भ होने पर लड़कियों में कैल्शियम की कमी होने लगती है। गर्भावस्था के समय पौष्टिक व सन्तुलित आहार नहीं मिलने से कैल्शियम की कमी हो जाती है। शिशु को स्तनपान कराने पर शरीर में कैल्शियम कम हो जाता है। कैल्शियम की अत्यधिक कमी के कारण अधिकांश स्त्रियां अरिथ क्षरण अर्थात आस्टियोपोरोसिस की विकृति होती है। आस्टियोपोरोसिस विकृति का प्रारम्भ में कुछ पता नही चलता है। जब कोई स्त्रियां पुरूष कहीं फिसल कर गिरता है तो नितम्ब की अस्थि टूटने पर आस्टियोपोरो. सिस का पता चलता है 40-45 वर्ष की आयु में स्त्रियां जद रजोवृति (मीनोपॉज) के समीप पहुंचती है तो आस्टियोपोरोसिस की विकृति अधिक होती हैचिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार 45 वर्ष से अधिक आयु की 50 प्रतिशत स्त्रियां और 75 वर्ष की आयु में 90 प्रतिशत स्त्रियां आस्टियोपोरोसिस की शिकार होती है। रजोनिवृतिके दौरान ऋतुस्राव में रक्तस्राव अधिक मात्रा में निकलता है। अधिक कैल्शियम निकलने पर स्त्रियों को आहार में अधिक कैल्शियम की आवश्यकता होती है। रजोनिवृति के समय स्त्रियों में आस्टियोपोरोसिस की विकृति इसलिए अधिक देखी जाती है कि रजोनिवृति के कारण स्त्रियों में इस्ट्रोजन नामक हारमोन की बहुत कमी हो जाती है। स्त्रियो में आनुवंशिकता के कारण भी आस्टिोयोपोरोसिस की विकृति होती है। स्त्रियों में आस्टियोपोरोसिस के लक्षण बहुत अदृश्य होते है। आस्टियोपोरोसिस के चलते शरीर धीरे-धीरे झुकने लगता है। विशेष रूप से रीढ़ की अस्थि में टेढ़ापन आने लगता है। गर्भावस्था में किसी स्त्री के आहार में कैल्शियम की कमी होने पर जन्म के बाद शिशु को सूखा रोग होसकता है। गर्भावस्था में कैल्शियम की कमी होने पर शिशु के मस्तिष्क को पर भी हानिकारक प्रभाव पड़ता है। शिशु अल्पबुद्धि होता है। 20 वर्ष की आयु तक किसी भी नवयुवती का शरीर पूरी तरह से विकसित हो चुका होता है लेकिन शरीर की अस्थियों को पूरी तरह से विकसित होने में 10 वर्ष का समय लगता है अर्थात् 30 वर्ष की आयु में अस्थियां पूरी तरह विकसित होती हैं, 30 वर्ष की आयु के बाद स्त्रियां में बीस मास (अस्थियों की मोटाई व वजन) कम होने लगता हैं। ऐसा कैल्शियम के अभाव में होता हैं। कैल्शियम का अभाव होने से गर्भावस्था में स्त्रियां चूना, मिट्टी, चूल्हे की राख, चाक, स्लेटी आदि खाने लगती है। इन सब चीजों से गर्भस्थ शिशु को बहुत हानि पहुंचने की सम्भावना रहती हैं। कैल्शियम की कमी को पूरा करने के लिए गर्भावस्था में स्त्रियों को फलो व सब्जियों कासेवन अधिक मात्रा में कराना चाहिए। फलो व सब्जियों से स्त्रियों को प्राकृतिक रूप में अधिक कैल्शियम मिलता है। कैल्शियम पर्याप्त मात्रा में सेवन करने से स्त्रियों को ऋतुस्राव (मासिक धर्म) में होने वाली पीड़ा से मुक्ति मिलती है। स्त्रियों के रजोनिवृति के प्रथम वर्ष में बोन मास 3 से 5 प्रतिशत कम होता है। उस विकृति को रोकने के लिए कैल्शियम का अवशोषण मांसाहारी लोगों की अपेक्षा कम होता है क्योकि कई पदार्थ उत्पादों में आक्जेलिक और फलोरिक एसिड होता है जो कैल्शियम के अवशोषण की गति कम कर देता है।


चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार पुरूषो के शरीर में 3.3 पौंड और स्त्रियों के शरीर में 2.2 पौंड कैल्शियम होता है। कार्बन हाइड्रोजन और नाइट्रोजन के बाद शरीर में कैल्शियम की मात्रा सबसे अधिक होती है। 99 प्रतिशत कैल्शियम दांतो और अस्थियों में होता है। कैल्शियम की कुछ मात्रा रक्त में मिली रहती है। मस्तिष्क के सेरेब्रोस्पाइल फ्लड में भी कैल्शियम होता है। स्त्रियों की स्तन ग्रंथियों में भी कैल्शियम रहता है जो स्तनपान के समय दूध के साथ निकलता है। इतना ही गाजरो में 80 मिलीग्राम कैल्शियम मिलता है। 100 ग्राम पत्तागोभी में 33 मिलीग्राम, बैगन में 18 मिली ग्राम, भिण्डी में 66 मिलीग्राम, मटर में 20 मिलीग्राम और सेम की फलियों में 50 मिलीग्राम कैल्शियम होता है। चावल, ज्वार, बाजरा, मक्का और दालो में प्रर्याप्त मात्रा में कैल्शियम पाया जाता है। 100 ग्राम सोयाबीन में240मिलीग्राम और लोबिया में 70 मिलीग्राम कैल्शियम होता है। 100 ग्राम प्याज मे 40 मिलीग्राम और शलगम में 30 मिलीग्राम कैल्शियम होता है। सूखे मेवों का सेवन करने में भी प्रर्याप्त मात्रा में मिलता है 7 में 0.03 प्रतिशत, अंजीरों में 0. 06 प्रतिशत कैल्शियम होता है।


आयु बढ़ने के साथ, रजो. निवृति की आयु के समीप पंहुचने वाली स्त्रियों को पहले से ही आहार में कैल्शियम युक्त अनाजों, दुध व दूध से निर्मित खाद्य पदार्थों का सेवन अधिक मात्रा में करना चाहिए। यदि आप ऑस्टियोपारो. सिस से बचने के लिए डॉक्टर के परामर्श से कैल्शियम की गोलियों का सेवन कर रही हैंतो विटामिन डी का इस्तेमाल अवश्य करे। विटामिन डी के बिना शरीर में कैल्शियम का अवशोषण नहीं हो पाता हैं। धूप में बैठकर भी प्राकृतिक रूप से विटामिन डी प्राप्त कर सकते है। रजोनिवति की स्थिति में यदि कोई स्त्री एस्ट्रोजन हारमोन नहीं ले रही हो तो उसे 15.00 मिली ग्राम कैल्शियम लेना चाहिए ऑस्टियोपोरोसिस से बचने के लिए स्त्रियों को रजोनिवृति के बाद सुबह-शाम पार्क में जाकर भ्रमण अवश्य करना चाहिए। भ्रमण करने से शारीरिक व्यायाम पूरा होता है और सुबह की शुद्ध वायु (आक्सीजन) मिलने से रक्त शुद्ध होता है। शरीर में शक्ति व स्फूर्ति विकसित होती है। मान. सिक तनाव नष्ट होता है।


                        


 


  :• आर्युवेद चिकित्सा विशेषज्ञ शरीर में कैल्शियम की पूर्ति के लिए मोती भस्म व पिष्टी, भौक्तिक शक्ति पिष्टी, स्फटिका भस्म, को बहुत गुणकारी मानते है प्रदाल पिष्टी के सेवन से शरीर में कैल्शियम की कमी नष्ट होती है। . शंखभस्म में कैल्शियम की भरपर मात्रा होती है। से 6 रत्ती मात्रा में शंख भस्म मधु, मिश्री या गरम जल के साथ सेवन कराने से बहुत लाभ होता है। शंरद भस्म में फॉस्फोरस का भी अशं रहता है जो आस्टियोंपोरोसिस में बहुत लाभ होता है। रजोनिवृति के समय शरीर में कैल्शियम की मात्रा कम हो जाती है। उस समय भी शंख भस्म बहत लाभ पहुंचाती है। आंवले के मुरब्बे के साथ भी सेवन करा सकते है। . प्रवाला पिष्टी मोती पिष्टी शंख भस्म कौडी भस्म और मुक्ता शक्ति भस्म से प्रवाल पंचामृत रस की गोलियां का निर्माण किया जाता है। प्रवाल पंचामत रस में कैल्शियम की मात्रा अधिक होती है। दो रत्ती मात्रा में सबह शाम मध के साथ चाटने से शरीर में कैल्शियम की कमी नष्ट होती हैऔर अस्टियोपोरोसिस की विकृति से छुटकारा मिलता है। बसत रस, माती भस्म स्वर्ण भस्म, बंग भस्म आदि से निर्मित होने के कारण कैल्शियम युक्त होता है। एक-एक रत्ती मात्रा में इस रस की गोलियां खरल में पीस कर मधु के साथ चाट कर सेवन करने से ऑस्टियोपोयोरोसिस में बहुत लाभ होताहै। स्वर्ण बसेरा मालिनी रस के सेवन करने से स्त्रियों का श्वेत प्रदर, रक्त प्रदर रोग भी नष्ट होते हैशारीरिक निर्बलता का निवारण होता है। • ऑस्टियोपायोरोसिस विकृति में कुक्कुटाण्डत्वक भस्म को आयुर्वेद चिकित्सा में बहुत गुणकारी मानते हैं। मुर्गी के अण्डों के ऊपर के सफेद छिलकों से इस भस्म को बनाया जाता है। दो से तीन रती मात्रा में मधू के साथ सबह-शाम चाटकर सेवन करने से शरीर में कैल्शियम की पर्ति होने से आ ऑस्टियोपोरोसिस की विकृति नष्ट होती है। अस्थियों व शरीर को बहुत शक्ति मिलती है। ऋतस्राव की विकृति और प्रसव के बाद शरीर में कैल्शियम की कमी पूरी होती है। • समुद्र गहराई से प्रवाल (मूंगा) निकाला जाता है। उसे प्रवाल को शुद्ध करके गुलाब जल में बहुत दिनों तक घोटकर पिस्टी बनाते हैं। पवाल की भस्म भी बनाई जाती है। प्रवाल में कैल्शियम की प्रर्याप्त मात्रा होती है। एक में छः रती मात्रा में मधु के साथ सुबह-शाम पिस्टी या भस्म का सेवन करने से कैल्शियम की पूर्ति होने से ऑस्टियोपोरो. सिस की विकृति से सुरक्षा होती है।    आस्टियोपोरोसिस