आर्थराइटिस से भी होता है डिप्रेशन
अपोलो अस्पताल, नई दिल्ली आर्थराइटिस न सिर्फ शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है बल्कि यह आपके मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है। आर्थराइटिस चाहे किसी भी रूप हो - चाहे वह ऑस्टियोआर्थराइटिस (ओए), रुमेटाइड आर्थराइटिस (आरएसोरियाटिक आर्थराइटिस (पीएसए), ल्यूपस, एंकिलॉजिंग स्पॉन्डिलाइटिस, गॉउट या फिर फाइब्रोमायल्जीआ, सभी का आपके मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। यह आमतौर पर डिप्रेशन या एंग्जाइटी के रूप में प्रकट होता है। यही नहीं, मानसिक समस्या होने पर यह आर्थराइटिस को और बदतर कर सकती है।
हालांकि डिप्रेशन और एंग्जाइटी के लक्षणों में थोड़ा अंतर होता है। एंग्जाइटी में तनाव, चिंता और चिड़चिड़ापन का अहसास होता है, साथ ही रक्तचाप में वृद्धि जैसी शारीरिक समस्या भी हो सकती है जबकि डिप्रेशन में उदासीनता, दैनिक गतिविधियों में रुचि की कमी, वजन का कम होना या अधिक होना, अनिद्रा या अत्यधिक नींद आना, ऊर्जा की कमी, ध्यान केंद्रित करने में असमर्थ होना, अयोग्य होने या अत्यधिक दोषी होने की भावना, और मृत्यु या आत्महत्या के बार- बार विचार आने जैसे लक्षण हो सकते हैं। आर्थराइटिस से संबंधित बीमारियों से पीड़ित लोगों में डिप्रेशन और एंग्जाइटी अलग- अलग लोगों और आर्थराइटिस के प्रकार पर निर्भर करती है। दरअसल एंग्जाइटी और डिप्रेशन आपके दर्द को कम कर सकते हैं। जिससे आपको कम दर्द का अहसास होगा लेकिन बाद में क्रोनिक दर्द आपके एंग्जाइटी और डिप्रेशन को बढ़ा देता है। इसके अलावा आर्थराइटिस और डिप्रेशन से पीड़ित लोगों की कार्य करने की क्षमता कम हो जाती हैइसलिए वे समय पर दवा भी नहीं ले पाते हैं जिसके कारण उन्हें अन्य स्वास्थ्य समस्याएं भी हो जाती है। यदि आपमें आर्थराइटिस के कारण लगातार दर्द रहता हो, आपका स्वास्थ्य खराब रहता हो और आपका मूड भी खराब रहता हो, तो फिर आपके आर्थराइटिस के इलाज की प्रक्रिया में थोड़ा अंतर आ सकता है।
दर्द और डिप्रेशन कई अध्ययनों से स्पष्ट रूप से पता चला है कि आर्थराइटिस के अधिक दर्द से पीड़ित लोगों को एंग्जाइटी या डिप्रेशन होने की संभावना अधिक होती है। हालांकि अधिक दर्द का डिप्रेशन से संबंध का वास्तविक कारण स्पष्ट नहीं है, लेकिन यह दो-तरफा होता है।
रोजाना दर्द होने से शारीरिक और मानसिक तनाव पैदा होता है। लंबे समय तक दर्द रहने पर मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र के रसायनों के स्तर में परिवर्तन आ जाता है। कोर्टिसोल, सेरोटोनिन और नॉरपिनेफिन जैसे स्ट्रेस हार्मोन और न्यूरोकेमिकल्स आपकी मनोदशा, सोच और व्यवहार को प्रभावित करते हैं। आपके शरीर में इन रसायनों के संतुलन में बाधा पहुंचने से कुछ लोगों में डिप्रेशन पैदा हो सकता है।
डिप्रेशन के कारण व्यक्ति की दर्द को सहन करने और इससे निजात पाने की क्षमता कम हो जाती है। इसलिए डिप्रेशन से मुक्त व्यक्ति की तुलना में डिप्रेशन से पीड़ित व्यक्ति में किसी भी तरह का दर्द अधिक गंभीर हो सकता है।
आर्थराइटिस और डिप्रेशन आर्थराइटिस अपने आप में दर्दनाक और परेशानी पैदा करने वाला होता है। इसके साथ होने वाला सूजन और थकावट आपको और भी परेशान कर सकता है। इसके अलावा आपको इससे संबंधित मधुमेह और दिल की बीमारी भी हो सकती है। इन सभी स्वास्थ्य समस्याओं के कारण आपकी शारीरिक गतिविधि में कमी आ सकती है, आप कम सामाजिक हो सकते हैं और अलग-थलग रह सकते हैं और आपकी नींद की गुणवत्ता भी खराब हो सकती है। आपकी जीवन शैली में ये सभी नकारात्मक परिवर्तन आपकी पीड़ा को बढ़ा सकते हैं और आपके समग्र मनोदशा को कम कर सकते हैं।
एंग्जाइटी ज्वाइंट पेन एंग्जाइटी ज्वाइंट पेन एंग्जाइटी और जोड़ों के दर्द में जटिल संबंध है। हालांकि हम सीधे तौर पर ऐसा नहीं कह सकते हैं कि एंग्जाइटी जोड़ों का दर्द पैदा करता है। बल्कि वास्तविकता यह है कि एंग्जाइटी के कारण कई समस्याएं पैदा होती हैं जिनके कारण जोड़ों में दर्द होता है। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि एंग्जाइटी के कारण हर व्यक्ति को जोड़ों का दर्द होगा। बल्कि जोड़ों के दर्द के और भी कई कारण हो सकते हैं और एंग्जाइटी उन्हीं कारणों में से एक है।
क्या है आर्थराइटिस आर्थराइटिस आर्थराइटिस को संधिशोध भी कहा जाता है। इसमें जोड़ों में सूजन होती है। पुरूषों की तुलना में यह महिलाओं में अधिक होता है, खासतौर पर जिनका वनज अधिक होता है। इसके लक्षण या तो समय के साथ धीरे-धीरे बढ़ते हैं या अचानक बढ़ जाते हैं। आइटिस के लक्षणों में जोड़ों में दर्द, जोड़ों में अकड़न, चाल में बदलाव, सुबह जागने पर जोड़ों में कड़ापन और बुखार प्रमुख है। आइटिस से बचाव के लिये नियमित व्यायाम करना चाहिये और खान-पान एवं रहन-सहन पर विशेष ध्यान देना चाहिये। आर्थाइटिस होने पर इलाज में बिलंब नहीं करना चाहिये क्योंकि इससे जोड़ों को लाइलाज क्षति पहुंच सकती है। हालांकि आर्थाइटिस जोड़ों की बीमारी है लेकिन यह हृदय, फेफड़े, किडनी, रक्त नलिकाओं को भी प्रभावित कर सकती है।
आज आथराइटिस के उपचार में काफी सुधार हो चुका है और बॉयलॉजिक डिजिज मोडिफाइंग औषधियों, आर्थोस्कोपी एवं जोड़ प्रत्यारोपण जैसी प्रक्रियायें जैसी नयी थिरेपियों एवं उपचार विधियों की मदद से विभिन्न तरह की आर्थराइटिस के इलाज के क्षेत्र में क्रांतिकारी सुधार आया है। इन थिरेपियों की मदद से अब मरीज पूरी तरह से स्वस्थ एवं सक्रिय जीवन जी सकता है, चाहे उसकी उम्र कितनी ही क्यों नहीं हो।”
डॉ (प्रो) राजू वैश्य नई दिल्ली स्थित इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल में वरिष्ठ ऑर्थोपेडिक्स एवं ज्वाइंट रिप्लेसमेंट सर्जन हैं तथा आर्थराइटिस के क्षेत्र में कार्यरत संस्था आर्थराइटिस केयर फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष हैं। अस्थि रोगों के संबंध में उनके करीब 300 शोध पत्र विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैंएक साल (2015) में अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्रिकाओं में 58 शोध पेपर प्रकाशित हुए जो कि एक रिकॉर्ड है