अश्वगंधा से दोस्ती है हितकारी


अश्वगंधा एक औषधीय पौधा है, जिसका वानस्पतिक नाम ”विथानिया सोमानिफेरा” है। अश्वगंधा एक कठोर और सूखा सहन करने वाला पौधा है। अश्वगंधा एक मध्यम लम्बाई (40 सेमी. से 150 सेमी.) वाला एक बहुवर्षीय पौधा है, इसका फल बेरी जो कि मटर के समान दूध युक्त होता है, जोकि पकने पर लाल रंग का होता है। जड़े 30-45 सेमी. लम्बी तथा 2.5-3.5 सेमी. मोटी मूली की तरह होती हैं। इनकी जड़ों का बाह्य रंग भूरा तथा यह अन्दर से सफेद होता हैं।


आज बढ़ते रासायिनक दुष्प्रभाव के कारण दुनिया भर में लोगों का ध्यान अब आयुर्वेद, होम्योपैथी और हर्बल दवाओं की तरफ बढ़ रहा है।परन्तु जैसा कि आप जानते हैं, रोगों के उपचार हेतु अपने आयुर्वेदाचार्य की सलाह लेकर आप औषधि पौधों का उपयोग घर में ही कर सकते हैं। अश्वगंधा का उपवन लगाकर, आप स्वस्थ रहने के साथ-साथ, आप आने वाली पीढ़ी को भी इस बहुमूल्य पौधे की जानकरी को बता सकते है। अश्वगंधा की फसल की खेती के द्वारा किसान आय भी प्राप्त कर सकते है, यह एक महत्वपूर्ण औषधीय फसल के साथ-साथ नकदी फसल भी है।अश्वगंधा पौधे पर देश में सबसे प्रभावी शोध भारत सरकार के वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद के अंतर्गत केन्द्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान, लखनऊ में हो रहा है। देश में उपलब्ध औषधीय पोधों की जैविक विविधता को संकलित कर आनुवंशिक आकलन के आधार पर विभिन्न उन्नत किस्मों को विकसित किया जा रहा है, जिनमें मुख्य प्रजातियाँ चेतक, प्रताप, पोषिता, रक्षिता, निमितली-101 औरनिमितली-118हैं।


अश्वगंधा से दोस्ती का महत्व


अश्वगंधा आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में प्रयोग किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण पौधा है। इसकी पौधों की जड़ और पत्ती को औषधीय उपयोग हेतु मुख्य रूप से प्रयुक्त किया जाता है। वस्तुत: एक टॉनिक के रूप में इसकी जड़ें प्रत्येक व्यक्ति के लिए चाहे वह स्त्री हो या पुरुष, बच्चे हों या वृद्ध, सबके लिए उपयोगी होती है। अश्वगंधा पौधों की जड़े शक्तिवर्धक, शुक्राणु वर्धक एंव पौष्टिक होती हैं। यह शरीर को शक्ति प्रदान कर बलवान बनाता हैं। महिलाओं की बीमारियों में भी यह काफी उपयोगी पाया गया है। इसके नियमित उपयोग से नारी की गर्भधारण क्षमता बढ़ती है, प्रसवोपरांत उनमें दूध की वृद्धि होती है। तथा उनकी श्वेत प्रदर, कमरदर्द एवं सामान्य शारीरिक कमजोरी आदि से जुड़ी समस्त समस्याएं दूर होती हैं। अश्वगंधा की जड़ों के चूर्ण का प्रयोग गठिया एंव जोड़ो के दर्द को ठीक करने के लिये भी किया जाता है। अश्वगंधा की पत्तियों का उपयोग आँख, फोड़े, हाथ और पैर की सूजन के लिए किया जाता है। अश्वगंधा की जड़ों के पाउडर का प्रयोग खाँसी एंव अस्थमा को दूर करने के लिये भी किया जाता है। नपुंसकता में पौधे की जड़ों का एक चम्मच पाउडर दूध के साथ प्रतिदिन सेवन करने से काफी लाभ मिलता है। अश्वगंधा की पतियों का उपयोग शरीर के जूँ मारने के लिए एक कीटनाशक के रूप में उपयोगी होता है।


अश्वगंधा एक औषधीय पौधा है, जिसका वानस्पतिक नाम ”विथानिया सोमानिफेरा” है। अश्वगंधा एक कठोर और सूखा सहन करने वाला पौधा है। अश्वगंधा एक मध्यम लम्बाई (40 सेमी. से 150 सेमी.) वाला एक बहुवर्षीय पौधा है, इसका फल बेरी जो कि मटर के समान दूध युक्त होता है, जोकि पकने पर लाल रंग का होता है। जड़े 30-45 सेमी. लम्बी तथा 2.5-3.5 सेमी. मोटी मूली की तरह होती हैं। इनकी जड़ों का बाह्य रंग भूरा तथा यह अन्दर से सफेद होता हैं।


आज बढ़ते रासायिनक दुष्प्रभाव के कारण दुनिया भर में लोगों का ध्यान अब आयुर्वेद, होम्योपैथी और हर्बल दवाओं की तरफ बढ़ रहा है।परन्तु जैसा कि आप जानते हैं, रोगों के उपचार हेतु अपने आयुर्वेदाचार्य की सलाह लेकर आप औषधि पौधों का उपयोग घर में ही कर सकते हैं। अश्वगंधा का उपवन लगाकर, आप स्वस्थ रहने के साथ-साथ, आप आने वाली पीढ़ी को भी इस बहुमूल्य पौधे की जानकरी को बता सकते है। अश्वगंधा की फसल की खेती के द्वारा किसान आय भी प्राप्त कर सकते है, यह एक महत्वपूर्ण औषधीय फसल के साथ-साथ नकदी फसल भी है।अश्वगंधा पौधे पर देश में सबसे प्रभावी शोध भारत सरकार के वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद के अंतर्गत केन्द्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान, लखनऊ में हो रहा है। देश में उपलब्ध औषधीय पोधों की जैविक विविधता को संकलित कर आनुवंशिक आकलन के आधार पर विभिन्न उन्नत किस्मों को विकसित किया जा रहा है, जिनमें मुख्य प्रजातियाँ चेतक, प्रताप, पोषिता, रक्षिता, निमितली-101 औरनिमितली-118हैं।


अश्वगंधा से दोस्ती का महत्व


अश्वगंधा आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में प्रयोग किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण पौधा है। इसकी पौधों की जड़ और पत्ती को औषधीय उपयोग हेतु मुख्य रूप से प्रयुक्त किया जाता है। वस्तुत: एक टॉनिक के रूप में इसकी जड़ें प्रत्येक व्यक्ति के लिए चाहे वह स्त्री हो या पुरुष, बच्चे हों या वृद्ध, सबके लिए उपयोगी होती है। अश्वगंधा पौधों की जड़े शक्तिवर्धक, शुक्राणु वर्धक एंव पौष्टिक होती हैं। यह शरीर को शक्ति प्रदान कर बलवान बनाता हैं। महिलाओं की बीमारियों में भी यह काफी उपयोगी पाया गया है। इसके नियमित उपयोग से नारी की गर्भधारण क्षमता बढ़ती है, प्रसवोपरांत उनमें दूध की वृद्धि होती है। तथा उनकी श्वेत प्रदर, कमरदर्द एवं सामान्य शारीरिक कमजोरी आदि से जुड़ी समस्त समस्याएं दूर होती हैं। अश्वगंधा की जड़ों के चूर्ण का प्रयोग गठिया एंव जोड़ो के दर्द को ठीक करने के लिये भी किया जाता है। अश्वगंधा की पत्तियों का उपयोग आँख, फोड़े, हाथ और पैर की सूजन के लिए किया जाता है। अश्वगंधा की जड़ों के पाउडर का प्रयोग खाँसी एंव अस्थमा को दूर करने के लिये भी किया जाता है। नपुंसकता में पौधे की जड़ों का एक चम्मच पाउडर दूध के साथ प्रतिदिन सेवन करने से काफी लाभ मिलता है। अश्वगंधा की पतियों का उपयोग शरीर के जूँ मारने के लिए एक कीटनाशक के रूप में उपयोगी होता है।


अश्वगंधा एक औषधीय पौधा है, जिसका वानस्पतिक नाम ”विथानिया सोमानिफेरा” है। अश्वगंधा एक कठोर और सूखा सहन करने वाला पौधा है। अश्वगंधा एक मध्यम लम्बाई (40 सेमी. से 150 सेमी.) वाला एक बहुवर्षीय पौधा है, इसका फल बेरी जो कि मटर के समान दूध युक्त होता है, जोकि पकने पर लाल रंग का होता है। जड़े 30-45 सेमी. लम्बी तथा 2.5-3.5 सेमी. मोटी मूली की तरह होती हैं। इनकी जड़ों का बाह्य रंग भूरा तथा यह अन्दर से सफेद होता हैं।


आज बढ़ते रासायिनक दुष्प्रभाव के कारण दुनिया भर में लोगों का ध्यान अब आयुर्वेद, होम्योपैथी और हर्बल दवाओं की तरफ बढ़ रहा है।परन्तु जैसा कि आप जानते हैं, रोगों के उपचार हेतु अपने आयुर्वेदाचार्य की सलाह लेकर आप औषधि पौधों का उपयोग घर में ही कर सकते हैं। अश्वगंधा का उपवन लगाकर, आप स्वस्थ रहने के साथ-साथ, आप आने वाली पीढ़ी को भी इस बहुमूल्य पौधे की जानकरी को बता सकते है। अश्वगंधा की फसल की खेती के द्वारा किसान आय भी प्राप्त कर सकते है, यह एक महत्वपूर्ण औषधीय फसल के साथ-साथ नकदी फसल भी है।अश्वगंधा पौधे पर देश में सबसे प्रभावी शोध भारत सरकार के वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद के अंतर्गत केन्द्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान, लखनऊ में हो रहा है। देश में उपलब्ध औषधीय पोधों की जैविक विविधता को संकलित कर आनुवंशिक आकलन के आधार पर विभिन्न उन्नत किस्मों को विकसित किया जा रहा है, जिनमें मुख्य प्रजातियाँ चेतक, प्रताप, पोषिता, रक्षिता, निमितली-101 औरनिमितली-118हैं।


अश्वगंधा से दोस्ती का महत्व


अश्वगंधा आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में प्रयोग किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण पौधा है। इसकी पौधों की जड़ और पत्ती को औषधीय उपयोग हेतु मुख्य रूप से प्रयुक्त किया जाता है। वस्तुत: एक टॉनिक के रूप में इसकी जड़ें प्रत्येक व्यक्ति के लिए चाहे वह स्त्री हो या पुरुष, बच्चे हों या वृद्ध, सबके लिए उपयोगी होती है। अश्वगंधा पौधों की जड़े शक्तिवर्धक, शुक्राणु वर्धक एंव पौष्टिक होती हैं। यह शरीर को शक्ति प्रदान कर बलवान बनाता हैं। महिलाओं की बीमारियों में भी यह काफी उपयोगी पाया गया है। इसके नियमित उपयोग से नारी की गर्भधारण क्षमता बढ़ती है, प्रसवोपरांत उनमें दूध की वृद्धि होती है। तथा उनकी श्वेत प्रदर, कमरदर्द एवं सामान्य शारीरिक कमजोरी आदि से जुड़ी समस्त समस्याएं दूर होती हैं। अश्वगंधा की जड़ों के चूर्ण का प्रयोग गठिया एंव जोड़ो के दर्द को ठीक करने के लिये भी किया जाता है। अश्वगंधा की पत्तियों का उपयोग आँख, फोड़े, हाथ और पैर की सूजन के लिए किया जाता है। अश्वगंधा की जड़ों के पाउडर का प्रयोग खाँसी एंव अस्थमा को दूर करने के लिये भी किया जाता है। नपुंसकता में पौधे की जड़ों का एक चम्मच पाउडर दूध के साथ प्रतिदिन सेवन करने से काफी लाभ मिलता है। अश्वगंधा की पतियों का उपयोग शरीर के जूँ मारने के लिए एक कीटनाशक के रूप में उपयोगी होता है।