क्लोरोफिल प्रकृति द्वारा प्रदत्त एक अनमोल उपहार हैयह मुख्य रूप से पेड़ पौधों में पाये जाने वाले हरे रंग के लिये उत्तरदायी होता है। रंग के साथ-साथ यह अनेकों गुणों की खान होता है। क्लोरोफिल की संरचना मानव रक्त की संरचना से बहुत मिलती-जुलती होती है। हीमोग्लोबिन जो कि लाल रक्त कण हैऑक्सीजन का वाहन होता है, क्लोरोफिल से अत्यधिक समानता रखता है। सिर्फ एक अंतर रहता है हीमोग्लोबिन का मुख्य एटम आयरन होता है और क्लोरोफिल का मुख्य एटम मैग्नेशियम होता हैइसीलिए क्लोरोफिल “पेड़ पौधों का रक्त” कहलाता है। मानव शरीर के लिएभी क्लोरोफिल अत्यधिक लाभदायक है। हमें यह मेथी, पालक, धनिया, स्पिरिलूना, अल्फा –अल्फा, व्हीटग्रास (गेंहू के जवारे) से प्राप्त होता है। सभी पौधों से प्राप्तक्लोरोफिल की गुणवत्तामें अंतर होता है। सर्वोत्तम क्लोरोफिल व्हीटग्रास से प्राप्त होता है।
धार्मिक एवं सामाजिक मान्यताएं :जवारे के सन्दर्भ में भारत में विशेष धार्मिक विश्वास है यह विश्वास मध्य भारत में परातन काल से ही विद्यमान है। नवरात्रि में देवी की उपासना से जुड़ी अनेक मान्यताएं हैं उन्ही में से एक है नवरात्रि पर घर में जवारे लगाने की। इसका प्रमुख कारण है, प्रकृति में ऐसी अमूल्य वनस्पतियाँ । किये हैं जिनका सेवन सही तरीके किया जाए तो जीवन भर । स्वस्थ और सुखी रह सकते हैं। ऐसा ही जवारे का रस है। वैज्ञानिकों द्वारा किए गए विश्लेषण से यह साबित हुआ है। कि इनमें अन्य औषधियों और वनस्पतियों की तुलना में " अधिक रोगनाशक और रोग प्रतिरोधात्मक गुण हैं। जवारे का। रस दूध, घी, अंडा और अन्य पौष्टि तत्वों की तुलना में । ज्यादा शक्तिवर्धन है। यह विभिन्न रोगों को मिटाता भी है । ९ और बचाव भी करता है। इस पौधे के रस का नियमित समय और सही ढंग से सेवन करने से महारोगों से बच सकते हैंऔर अनिद्रा, त्वचा रोग, संधि वात, प्रदर रोग, बालों के रोग, • सिस्टम पीलिया, जुकाम, एनीमिया, मोटापा, पथरी एवं कैंसर जैसे। निखार रोगों से बच सकते हैं और । मिटा भी सकते हैं। प्राकृतिक चिकित्सकों का मानना है कि इस रस के सेवन से बवासीर, अस्थमा, एसिडीटी, कब्ज, लहू की कमी, गठिया के साथ-साथ बुढ़ापे की कमजोरी कमजोरा एवं बुढ़ापे को जल्दी आने से । रोग सकते हैं। साथ-साथ शारीरिक सौंदर्य भी पा सकते हैं। जवारे के रस का चिकित्सक की देख-रेख में नियमित और सही ढंग से उपयोग करने से कैंसर जैसे रोग से छुटकारा मिलता है। इस रस में शरीर को स्वस्थ रखने के साथ-साथ उसमें शोधन करने की भी अद्भुत क्षमता है। प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में गेहूं के जवारे के रस को ग्रीन ब्लड की उपमा दी गई है। क्योंकि मनुष्य के रक्त में पाए जाने वाले तत्व इस रस में भी पाए जाते हैं। इसीलिए तो उसके सही उपयोग से हम रोग मुक्त हो सकते हैं। ।
कैंसर के ऐसे बड़े-बड़े रोगी उन्होने अच्छे किये हैं, जिन्हे डाक्टरों ने असाध्य समझकर जवाब दे दिया था और जो
और जो मरणप्रायः विद्यमान अवस्था में अस्पताल से निकाल दिए गए थे। यह ऐसी अद्भुत हितकर चीज है। उन्होने इस साधारण से रस से मान्यताएं अनेकानेक भगंदर, बवासीर, मधुमेह, गठियाबाथ, पीलियाज्वर, । दमा, खांसी वगैरह के पुराने से पुराने असाध्य रोगी अच्छे वनस्पतियाँ । किये हैं। बुढ़ापे की कमजोरी दूर करने में तो यह रामबाण भर । है। भयंकर फोड़ों और घावों पर इसकी लुगदी बॉधने से । जल्दी लाभ होता है। है। व्हीटग्रास से प्राप्त क्लोरोफिल बिना किसी विपरीत प्रभाव के मानव शरीर को स्वास्थ्य और जीवन ऊर्जा प्रदान करता है। क्लोरोफिल का मानव शरीर पर गुणकारी प्रभाव पड़ता है यह बात न सिर्फ हमारी परम्परा में मान्य है बल्कि । वैज्ञानिक शोधों ने भी पुष्ट किया है। व्हीटग्रास जूस के सेवन से हीमोग्लोबिन के स्तर में व्हीटग्रास जूस के सेवन से हीमोग्लोबिन के स्तर में चमत्कारिक सुधार होता है। किडनी एवं लीवर सिस्टम में सुधार होता है। इससे सौंदर्य । निखार भी होता है। आज के प्रदूषित । वातावरण ने हमारे शरीर को अने. कों विषैले तत्वों जैसे, हेवी मेटल्स, पेस्टीसाइड्स आदि से बुरी तरह से प्रभावित किया है। व्हीटग्रास जूस डिm टॉक्स करने का सर्वोत्तम साधन है। इसके इन सब गुणों के कारण हम निसंकोच इसे 'अमतपेय' कह सकते हैं।